शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

कोरा इतिहास

कितनी तन्हाई,कितने थे आंसू कितना उदास था मैं
तुझसे बिछड़ के तू ही बता दे कितना पास था मैं

चाँद भी,आसमा भी और हैं सितारे सब वहां
तेरी धरती पर फलक की अनबुझी प्यास था मैं

वो आँगन,वो दीवारें,वो तख्त-ओ-ताज-ओ-महल
वो दरवाजे वो खिड़कियाँ और इंतज़ार की आस था मैं

रिश्तों के दायरों ने कुछ ऐसे जकड़ लिया था मुझे
समझ नही आता कितना अजनबी कितना ख़ास था मैं

कहीं तस्वीरें,कहीं अक्स तो कहीं परछाइयाँ दिखाई देती हैं तुझे
मेरा कोई वजूद नही जनता हूं,सिर्फ़ महज आभास था मैं

धरती पर आ गिरी निर्मल निवस्त्र चांदनी लेकिन
काले बादलों के रूप में चाँद का लिबास था मैं....

"अक्षय" निशब्द था मौन था तुम्ही बताओ मैं कौन था
क्या महज कोरे कागजों पे लिखा कोरा इतिहास था मैं
अक्षय-मन

रविवार, 8 नवंबर 2009

कुछ रंग जिंदगी के ये भी हैं ..


बदल गया है रात का रंग सुबह का रंग क्या होगा
बचपन अपना भूल गया जवानी का रंग क्या होगा

सिमट गए हैं सपने सभी एक फटी-पुरानी चादर में
रात की सोती सड़कों पर उन सपनो का रंग क्या होगा

वक्त कहीं गया नही फिर भी वक्त की कमी क्यूँ है आज
जिंदगी जी ली जैसे-तैसे अब मौत का रंग क्या होगा

हर पल हर वक्त एक नई कहानी जन्म लेती है यहाँ
जिंदगी जिससे लिखी गई उस सियाही का रंग क्या होगा

"अक्षय" गुमनामियों मे खो रहा है हर बात से अनजान
जो ढूंढ़ता रहा है मुझे हर वक्त उस आईने का रंग क्या होगा
अक्षय-मन