शुक्रवार, 22 जुलाई 2011
जमाना
आपका क्या कहना है??
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बेखुदी
आपका क्या कहना है??
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मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
अनोखा आभास
जीवन मेरा, जो एक वृक्ष सा अटल खड़ा था
पल दो पल का साथी हर पत्ता ,ना कोई उमंग थी
अक्षय-मन
आपका क्या कहना है??
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शनिवार, 30 जनवरी 2010
तस्वीर टूटे आईने की..
चाँद कि परस्तिश में जैसे चांदनी को जलते हुए देखा
यूँ दिल में दबा नहीं सकते उन दहकते शोलों को
वो रंजिश-ओ-ग़म तेरी आँखों में सुलगते हुए देखा
वक़्त के साथ यूँ तो बढ़ जाएगी सासें मेरी
हर लम्हे को जिंदगी ने मगर,थमते हुए देखा
इस तन्हाई को तुम अब तन्हा ही रहने दो मौला
हमने खामोश समुन्द्रों को जलजलों में बदलते हुए देखा
कोई तपिश है या सुलगती आग सीने में कैद
सूरज को मैंने अश्को सा पिघलते हुए देखा
इन कागजों में दर्द को आखिर समेट लूँ कितना
मैंने जिंदगी को पन्नो कि तरहां बिखरते हुए देखा
अक्षय-मन
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शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
कोरा इतिहास
तुझसे बिछड़ के तू ही बता दे कितना पास था मैं
चाँद भी,आसमा भी और हैं सितारे सब वहां
तेरी धरती पर फलक की अनबुझी प्यास था मैं
वो आँगन,वो दीवारें,वो तख्त-ओ-ताज-ओ-महल
वो दरवाजे वो खिड़कियाँ और इंतज़ार की आस था मैं
रिश्तों के दायरों ने कुछ ऐसे जकड़ लिया था मुझे
समझ नही आता कितना अजनबी कितना ख़ास था मैं
कहीं तस्वीरें,कहीं अक्स तो कहीं परछाइयाँ दिखाई देती हैं तुझे
मेरा कोई वजूद नही जनता हूं,सिर्फ़ महज आभास था मैं
धरती पर आ गिरी निर्मल निवस्त्र चांदनी लेकिन
काले बादलों के रूप में चाँद का लिबास था मैं....
"अक्षय" निशब्द था मौन था तुम्ही बताओ मैं कौन था
क्या महज कोरे कागजों पे लिखा कोरा इतिहास था मैं
अक्षय-मन
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रविवार, 8 नवंबर 2009
कुछ रंग जिंदगी के ये भी हैं ..
बदल गया है रात का रंग सुबह का रंग क्या होगा
बचपन अपना भूल गया जवानी का रंग क्या होगा
सिमट गए हैं सपने सभी एक फटी-पुरानी चादर में
रात की सोती सड़कों पर उन सपनो का रंग क्या होगा
वक्त कहीं गया नही फिर भी वक्त की कमी क्यूँ है आज
जिंदगी जी ली जैसे-तैसे अब मौत का रंग क्या होगा
हर पल हर वक्त एक नई कहानी जन्म लेती है यहाँ
जिंदगी जिससे लिखी गई उस सियाही का रंग क्या होगा
"अक्षय" गुमनामियों मे खो रहा है हर बात से अनजान
जो ढूंढ़ता रहा है मुझे हर वक्त उस आईने का रंग क्या होगा
अक्षय-मन
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बुधवार, 1 जुलाई 2009
ये वक़्त
जब हों पैरों में पत्थर,तो हाथ नही बढते
लब्जों को मिल जाती है जब ख्यालों की उड़ान
सफहों सा रंगा आसमां,पंख फैलाता है ये वक़्त
(इस तस्वीर को देख कुछ और शब्द दिल में आते हैं)
हाथों की लकीरों पर वक़्त ने कुछ सितारे लिखें हैं
काले बादलों की रात में भी जगमगाता है ये वक़्त
अक्षय-मन
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रविवार, 28 जून 2009
बूंदों की सौगात
क्यूँ छाई गहरी उदासी है ।
झोंका पवन का आने से
पत्ता कोई शर्माता है
प्यार बरसा कर इस धरा पर
देख गगन मुस्काता है ।
भीगा फिरसे आज वो बचपन
यादों की इस बारिश में
बरसों बाद ख़ुद से मिला हूं
सावन भी है इस साजिश में ।
नीचे लिखीं कुछ पंक्तियाँ मेरे पापा के लिए जो न होकर भी मेरे साथ हैं
कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में...
नयन मेरे नम पड़े हैं
पहली इस बरसात में
हमसे दूर गए,वो बिछडे मिले हैं
बूंदों की सौगात में ।
अक्षय-मन
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बुधवार, 24 जून 2009
तुमने अपनी कला से.....
रंगों में भी पहचान होती है ये मैंने तुमसे जाना है
इन रंगों को नया नाम दिया तुमने अपनी कला से....
हाथों में भी दुआ होती हैं ये मैंने तुमसे जाना है
इन हाथों से संसार संवार दिया तुमने अपनी कला से....
मौन चित्रों में आवाज होती है ये मैंने तुमने जाना है
इन चित्रों को एक सुर दिया तुमने अपनी कला से...
अक्षय-मन
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शनिवार, 20 जून 2009
एक लेखक को मेरा पत्र "तुम क्या लिखते हो ?"
तो मैं तुमसे पूछता हूं
तुम क्या लिखते हो ?
किसी बच्चे,किसी अनाथ का रोना या
किसी गरीब का भूखे पेट आलापना
तो मैं तुमसे पूछता हूं
तुम क्या लिखते हो ?
किसी विधवा की कुछ पुरानी यादें या
किसी तलाकशुदा की अकेली काली रातें
तो मैं तुमसे पूछता हूं
तुम क्या लिखते हो ?
किसी की आंखों का वो सुना-सुना इंतज़ार या
किसी के झूठे वादे,ठुकराया हुआ प्यार
तो मैं तुमसे पूछता हूं
तुम क्या लिखते हो ?
किसी नई-नवेली दुल्हन की टूटती चूड़ीयाँ या
रिश्तों के बंधन में बंधी मज़बूरी की बेड़ियाँ
तो मैं तुमसे पूछता हूं
तुम क्या लिखते हो ?
देश की मज़बूरी,नेताओं का अत्याचार या
किसी शहीद का बलिदान उसका रोता परिवार
तो मैं तुमसे पूछता हूं
तुम क्या लिखते हो ?
किसी अबला पर उठी निगाहें उसका बलात्कार या
बम फटने की कहानी वो आतंकवाद वो नरसंघार
तो मैं तुमसे पूछता हूं
तुम क्या लिखते हो ?
माँ-बाप के आंसूं बेटी की विदाई या
बेटों की डांट माँ-बाप की पिटाई
तो मैं तुमसे पूछता हूं
तुम क्या लिखते हो ?
तुम क्यूँ लिखते हो ?
ये दर्द तुम्हारा नही फिर भी
इस अजनबी दर्द को कैसे जी लेते हो ?
यदि मैं भी इस दर्द को जीने लग जाउं
तो तुम,तुम ना रहो और मैं,मैं ना रहूं ?
शायद मेरे सवालों का यही जवाब है..........अक्षय-मन
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