बेखुदी में भी क्या खुमारी है
ये ज़िन्दगी अब कहाँ हमारी है
मर तो जाते हम बरसो पहले
भूल जाते गर,ये जान तुम्हारी है
ये ज़िन्दगी अब कहाँ हमारी है
आहिस्ता से इन धडकनों को छुओ
दिल को मेरे कोई बीमारी है
लुटने को दर पे खड़ा तेरे "अक्षय"
कहने को तो ये भिखारी है...
ये ज़िन्दगी अब कहाँ हमारी है
अक्षय मन
khumaari to bekhudi me hihai khudi me nahi
जवाब देंहटाएंभैय्या , किसे दिल दे चुके हो .. हमें तो बताओ ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुद्नर गज़ल .. मज़ा आ गया पढकर
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html