बुधवार, 14 मई 2008

विकलांग बचपन की वंदना


सपनो में डूबी आँखों में वो बचपन याद आता है मुझको

दिल में डूबी उन यादों का दर्पण याद आता है मुझको

हर किसी के दिल में अपने बचपन की याद समाई होती है

जीवन की रहस्यमई पहेली में बचपन को दोबारा जीने
की आस छुपी दिखाई देती है मुझको

बचपन के रिश्ते बड़े होने पर कुछ और ही दिखाई देते हैं

ज़िन्दगी की हर कसौटी पर परखे जाने के बाद भी कमजोर दिखाई देते हैं

:> ऐसा भी बचपन है जो कभी दिखाई नहीं देता

एक ऐसा भी बचपन है जो कभी अंगडाई नहीं लेता

एक ऐसा भी बचपन है जो प्यार के लिए तरसता है

एक ऐसा भी बचपन है जो उम्मीद के सहारे जीता है

क्यूंकि

उसका बचपन उलझा हुआ है ज़िन्दगी की पहेली सुलझाने में

क्यूंकि

उसका बचपन झुलसा हुआ है हवस की आग में

क्यूंकि

उसका बचपन सिमटा हुआ है फुटपाथ के अंधेरो में

क्यूंकि

उसका बचपन लिपटा हुआ है अपने अनसुलझे सवालो में

इस बचपन को दोबारा बचपन जीने की कोई आस नहीं

इस बचपन को उन रिश्तो से कोई मतलब नहीं

जो हर बार किसी न किसी कसौटी पर परखे जाते हैं

और जरा सी नज़र अंदाजी पर तोड़ भी दिए जाते हैं

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