
आँखे हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
यादों के खुले आसमान पर
बादल अभी मंडराया नहीं
आँखे हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
बहुत अजीब सा लगता है
सच ना जाने क्यूँ छुपता है
मैं अकेला हूं आज इसलिए
मैंने कभी कुछ छुपाया नहीं
आँखे हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
दोस्त कभी दो बनाये थे
वो भी हाँ शायद पराये थे
वक़्त ऐसी चाल चल गया
मैं कुछ समझ पाया नहीं
आँखे हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
कुछ पहेलियों में आज मेरी
पहेली भी शामिल होगी
रिश्तों की डोर क्यूँ है उलझी
क्यूँ इसे किसी ने सुलझाया नहीं
आंखें हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
किसी का मैं कुछ हूं
कुछ रिश्तों से बंधा हूं
कुछ रिश्तों के मायने
मैं समझ कभी पाया नहीं
आंखें हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
शब्दों की शाख पर देखो
अरमानों का परिंदा बैठा है
बहुत चाह थी उड़ने की मगर
किसी ने उसे उड़ाया नहीं
आंखें हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
अक्षय-मन