मंगलवार, 27 मई 2008

रिश्ते या दर्पण


जब अश्को के लावे से एक चिता जलती है
जब बिना बिहाई ख़ुशी विधवा होती है

तब मन घिली मिटटी और मजबूरियां बेरहम हाथ बनते हैं
ज़िन्दगी कि हर कसोटी पर परखे जाने के लिए बेढंग आकार लेते हैं

उस पल मन क्या कहता है
क्या कुछ मजबूरियों ,परेशानियों को
ज़िन्दगी का नियम समझकर
अपने अन्दर दबाके रखता है
या फिर कठपुतली कि तरहां इधर - उधर नाचता रहता है

जब मन कि आँखे रिश्तों के दर्पण मैं अपने आप को देखती हैं
अपने अर्पण से समर्पण जब श्रृंगार करती हैं
और इस श्रृंगार से रिश्ते -रुपी दर्पण को लुभाने कि नाकाम कोशिश करती हैं

इतना सब कुछ करने के बाद भी ये दर्पण हमें वोही दिखता है जो हम देखते हैं

हंस कर देखते हैं तो ख़ुशी दिखाई पड़ती है
आंसू बहाकर देखते हैं तो दुःख और तन्हाई मालूम पड़ती है
और ये दर्पण भी जरा सी चोट या दबाब पड़ने पर चकनाचूर हो जाता है

और अपने अन्दर समाई पुरानी यादों को इधर -उधर बिखेर जाता है

अगर उन यादों को समेटने कि कोशिश करता हूं
तो अपने हाथ खून मैं रेंज दिखाई देते हैं
यादों के कुछ अनसुलझे टुकड़े अपने ही दिल मैं गड़ते हुए दिखते हैं

उस पर भी हम ही को कसूरवार साबित क्या जाता है
मुजरिम समझकर कटघरे में खडा क्या जाता है

सफाई देने पर इल्जाम हम पर ही लगाये जाते हैं
क्यूंकि
इस अदालत में भी गवहा झूठे और मतलबी हुआ करते हैं

अपनी हर दलील में रिश्तों कि बदनामी क्या करते हैं
और
फैसला सुनाये जाने पर
एक बार फिर से समर्पण -रुपी फांसी से हम दम तोड़ते दिखते हैं

वाह ! ये भी कितने अजीब रिश्ते हुआ करते हैं

सोमवार, 19 मई 2008

हस्त कला

हस्त कला के ये मंत्र
निर्जीव को भी जीवित करने के ये तंत्र
मुझे भी सिखाओ
दिल की भावनाये
कुछ अक्षय अकिर्तियाँ
मन की जिज्ञासाएं
अपनी ये हस्त कलाएं
मुझे भी बतलाओ
मोन मैं भी अमोनता
एक निर्जीव वस्तु से दिल की बात कहलवाने की तुम्हारी क्षमता हमें भी समझाओ
इनकी अमिट मुस्कुराहट से दिल लुभाती इस बनावट से
हमारी भी पहेचान कराओ
अश्रुओ से मिट्टी के मिलन का
दर्द मैं ढलकर हँसते जीवन का
एहेसास हमें भी तो कराओ

बुधवार, 14 मई 2008

विकलांग बचपन की वंदना


सपनो में डूबी आँखों में वो बचपन याद आता है मुझको

दिल में डूबी उन यादों का दर्पण याद आता है मुझको

हर किसी के दिल में अपने बचपन की याद समाई होती है

जीवन की रहस्यमई पहेली में बचपन को दोबारा जीने
की आस छुपी दिखाई देती है मुझको

बचपन के रिश्ते बड़े होने पर कुछ और ही दिखाई देते हैं

ज़िन्दगी की हर कसौटी पर परखे जाने के बाद भी कमजोर दिखाई देते हैं

:> ऐसा भी बचपन है जो कभी दिखाई नहीं देता

एक ऐसा भी बचपन है जो कभी अंगडाई नहीं लेता

एक ऐसा भी बचपन है जो प्यार के लिए तरसता है

एक ऐसा भी बचपन है जो उम्मीद के सहारे जीता है

क्यूंकि

उसका बचपन उलझा हुआ है ज़िन्दगी की पहेली सुलझाने में

क्यूंकि

उसका बचपन झुलसा हुआ है हवस की आग में

क्यूंकि

उसका बचपन सिमटा हुआ है फुटपाथ के अंधेरो में

क्यूंकि

उसका बचपन लिपटा हुआ है अपने अनसुलझे सवालो में

इस बचपन को दोबारा बचपन जीने की कोई आस नहीं

इस बचपन को उन रिश्तो से कोई मतलब नहीं

जो हर बार किसी न किसी कसौटी पर परखे जाते हैं

और जरा सी नज़र अंदाजी पर तोड़ भी दिए जाते हैं

मंगलवार, 13 मई 2008

कुछ भी कहे सकते हो


मेरी आस्था मेरा विश्वास हो तुम
मेरे जीवन का अनुराग हो तुम

मेरी कविताओं का श्रंगार हो तुम
मेरे शब्दों की अन्भुझी प्यास हो तुम

मैं सीप मेरा मोती हो तुम
मैं आकाश मेरी धरती हो तुम

मैं आगाज़ मेरा अंजाम हो तुम

मैं सवाल मेरा जवाब हो तुम
मैं पराजित मेरी आपराजिता हो तुम

मैं धड़कन, धड़कन का एहेसास हो तुम
मैं विकृत मेरी शक्ति हो तुम

मैं बागवान मेरा बाग़ हो तुम

>तुम्हे भी नहीं पता तुम क्या हो
तुम्हारा क्या स्वरूप है तुम्हारे कई रूप हैं
बस उनको देखने का नजरिया अलग अलग है....

तुम माँ,बहिन,बेटी,और पत्नी बनकर अटूट रिश्तो की अखंड ज्योत बन जाती हो
और उन रिश्तों को निभाने के लिए हर उस बलिदान को जो तुमने दिया है अपना फ़र्ज़ समझती हो

मगर एक बलिदान और भी है
इस नग्न समाज मैं एक और रूप भी है तुम्हारा
वो रूप है वेश्या का

जो हर बलिदान से बड़ा है आदमी की कभी न भुजने वाली हवस तुम्हारे दरवाजे पर ही दस्तक देती है

मुझे तेरे इस बलिदान से भी रक्षा-रुपी कवच नज़र आता है...
जो हर नारी की रक्षा मैं माँ दुर्गा का आशीर्वाद नज़र आता है

मगर तेरे इस बलिदान को भी बुरी नज़र से देखा जाता है
और तुझे एक गाली समझा जाता है

सोमवार, 12 मई 2008

तू मेरा नहीं पराया है

एक तमन्ना है तेरी पलके अपनी पलकों से मिलाने की
एक आरजू है तेरे आंसू अपनी पलकों पे सजाने की

एक कोशिश है तेरे गम अपने दिल मैं छुपाने की
एक साजिश है तेरी खुशियाँ तुझको लोटाने की
मगर
तेरी नज़र को उसका इंतज़ार आज भी है
गमो के समुन्दर मैं डूबने का अरमान तुझे आज भी है

अपने दिल के ज़ज्बातो को छुपाने की कोशिश तुझे आज भी है
उस पत्थर दिल का क्या जो तेरे मॅन को मोम समझता रहा

उस जलती लौ का क्या जो तुझे हमेशा पिग्लाती रही
उस बेरहम हंसी का क्या जो तेरे सुख मैं भी दुःख का एहेसास दिलाती रही

उस बदनसीब तकदीर का क्या जो तुझे तेरे अंधेरो से वाकिफ कराती रही
क्यूँ अपनी ही परछाइयों के पीछे भाग रही है तू
क्यूँ अपने बेदाग दामन पर दाग लगा रही है तू

तुझ पर अपनी खुशियाँ निसार करने को दिल चाहता है
तुझ पर अपने विश्वास को समर्पित करने को दिल चाहता है

तेरी आँखों से तेरी यादों को चुराने की आस आज भी है
अपने सपनो को तेरी आखो से देखने का इंतज़ार आज भी है
मगर
तेरी नज़र को उसका इंतज़ार आज भी है आज भी है...........

शनिवार, 10 मई 2008

कलयुग अवतार ..........

उन रोती हुई आँखों मैं क्या नज़र आता है
उन सोती हुई राहों मैं क्या नज़र आता है

उन आँखों मैं पेट की आग से बिलगती गरीबी दिखाई देती है
उन सोती राहों मैं गरीबी के साथ चलने की मज़बूरी दिखाई देती है

गरीबो का एक सपना होता है की वो कभी सपना न देखे
अगर देखे भी तो उसे साकार करने की उम्मीद न रखे
क्यूंकि
इस दरिद्र समाज के अंधी सोच वाले हम लोग उन्हें एक ऐसी दीमक समझते हैं जो देश को खोखला कर रही है

गरीबी की इससे बुरी हालत क्या हो सकती है...........

जब माँ बाहर होती है तो बेटी कुटिया मैं रो रही होती है
और जब बेटी बाहर होती है तो माँ कुटिया मैं नग्न पड़ी होती है.
जिसमे माँ और बेटी की फटी चादर मैं लिपटी अधनग्न तस्वीर नज़र आती है

गरीबी के सामने भगवान् भी छोटा नज़र आता है
कृष्ण भी सुदामा के चरण धोता नज़र आता है

इतने बड़े उदहारण के सामने भी गरीबी को श्राप समझा जाता है और फिर फटी चादर मैं लिपटाएक पूरा परिवार नज़र आता है

शुक्रवार, 9 मई 2008

मुझे आजादी चाहिए

मेरी पुकार मुझे आजादी चाहिए

मेरा अधिकार मुझे आजादी चाहिए

मेरी साधना मुझे आजादी चाहिए
मेरी वंदना मुझे आजादी चाहिए

गरीबो की भूख को माँ की कोख को आजादी चाहिए
भ्रष्ट हो चुकी राजनिति से नेता की झूठी काबुली से आज़ादी चाहिए

समाज के अंधे नजरिये से उनकी गलत मति से आज़ादी चाहिए
१४ साल की शादी को १५ साल की माँ को आजादी चाहिए
दहेज़ देकर बिकती नारी को आग मैं जलती साडी को आज़ादी चाहिए

बेटी को बाप से बलात्कार के श्राप से आज़ादी चाहिए
ऐसे रिश्तो की छाप से आँखों मैं उठती भाप से आजादी चाहिए

कानून के अंधे न्याय से गवाहों के झूठे बयां से आजादी चाहिए
वकीलों की झूठी दलीलों से झूठ के बड़ते शूलो से आज़ादी चाहिए

रिश्तों की झूठी बनावट से मतलब निकलने की चाहत से आज़ादी चाहिए

कुर्सी पर बैठे अधिकारों से अनसुनी पुकारो से आजादी चाहिए
शतरंज खेलती सत्ता से रोज के बड़ते भत्ता से आजादी चाहिए

बेटे की फटकार से अटूट रिश्तो की ट्क्रार से आज़ादी चाहिए
इस सिसकती लाचारी से बेघर होने की बीमारी se आजादी चाहिए

भूखी पड़ी कामयाबी से बेरोजगारों की अकाली से आजादी चाहिए
र्रिश्वत्खोरो की फर्मानी से नेताओं की मनमानी से आज़ादी चाहिए

गुरुवार, 8 मई 2008

मैं और मेरे मन का रथ

कुछ यादें कुछ सपने कुछ अपने कुछ पराये सवार हैं मेरे मन के रथ

पर

कुछ शब्द कुछ कविताएँ कुछ भावनाए कुछ सच राहें हैं मेरे मन के रथ की


कुछ कल्प्नाये कुछ हकीक़त कुछ जज्बात कुछ हालात मंजिल है मेरे मन के रथ की
कुछ सवाल कुछ पहेलियाँ कुछ मलाल कुछ कहानियां नींव है मेरे मन के रथ की

तन विचलित मन विचलित डगमगाया है आज मन का रथ
अनजानी मंजिल को ढूढने निकल पड़ा है जाने कौन से पथ

अंतर्मन्न से मनन करने पर मन का रथ कुछ और नज़र आता है
हर दुःख हर झूठ को अमृत समझकर पिता नज़र आता है

अन्याय के प्रति न्याय का साधन है मन का रथ
पुण्य के लिए पाप का प्रश्चित है मन का रथ

सपने साकार करने का माध्यम है मन का रथ
बेटे के लिए माँ का प्यार है मन का रथ

जीने के लिए जीवन का आधार है मन का रथ
हमको दिया भगवान् का आशीर्वाद है मन का रथ

बुधवार, 7 मई 2008

हमारे मन का रथ

अपने मनोबल अपने तपोबल से खिचो तुम मन के रथ को
आंसुओं की बारिश से बादलों की गुजारिश से सिंचो तुम मन के रथ को

आशाओं के भवर मैं शब्दों के नगर मैं बसाओ तुम मन के रथ को
बीती जुडी यादों से अनकही बातों से सजाओ तुम मन के रथ को

प्यार के बहाव से सांसों के चढाव से बढाओ तुम मन के रथ को,
बचपन की चहक से फूलों की महक से महेकाओ तुम मन के रथ को

आँखों की चमक से होंठो की भवक से जगाओ तुम मन के रथ को,
मन के साज से कोयल सी आवाज से गव्वाओ तुम मन के रथ को

ह्रदय के कम्पन्न से रुधिर की मिलन से मिलाओ तुम मन के रथ को,
अपनी वंदना से शब्दों की साधना से मंदिर बनाओ तुम मन के रथ को

सोमवार, 5 मई 2008

तेरा मेरा प्यार अमर .


प्यार जो अमर है और एक ऐसा उदाहरण है जो शायद सबसे बड़ा है वो उदाहरण है धरती और आकाश के असीम प्यार का..:-

जब धरती ने आकाश से कहा हम दूर है तो क्या हम कभी मिले नहीं तो क्या

तू मेरे लिए सब कुछ है
जुदा होकर भी मेरा सुख है

तेरे प्यार भरे आंसू हमेशा मेरी प्यास भुजाते रहेंगे
तेरा साया हर पल मेरे साथ है

तेरे इस प्यार को किया नाम दूं
तेरे इस समर्पण को कैसे चूकाऊं

जब तू मुझे आवाज देता है
जब तू ऐसे गरजता है तो तेरी पुकार,

तेरा प्यार तेरा एहेसास ,तेरा विश्वास मुझे महेसूस करता है
की सदियों से तू मेरा है और सदियों तक मेरा रहेगा

तेरी वाफाई मुझे खुशाल बनती है
तेरी सच्चाई मुझे जीने का मकसद सिखाती है

हर रात तेरी अनंत आखे मुझे देखती है
हर रात मेरी तन्हाई तेरी बाँहों मैं होती है

जब सूर्य मुझे जला रहा होता है
अपनी आग मुझ पर बरसा रहा होता है
तब भी तू मेरा साथ देता है

एक दीवार बनकर सूर्य के सामने आ जाता है
एक छाया बनकर मुझ से मिल जाता है

तू क्यूँ मुझे इतना चाहता है
तू क्यूँ मुझसे इतनी महोब्बत करता है

मैं तुझे क्या देती हूं कुछ भी तो नहीं
आकाश कहेता है-
मेरे लिए तू सब कुछ है
मेरे लिए तू मेरी तनहाई का साथी है

तुझे पता है तू कभी भी मुझे अकेला नहीं रहेने देती
जहाँ- जहाँ मैं जाता हूं तुझे ही पता हूं
जब मैं नदियों,झीलों और अक्षय समुन्दरो से तेरी
प्यास भुजाने के लिए जल ग्रहण करता हूं

तो तुझे नहीं पता उस पल कितना अकेला होता हूं
उस पल ऐसा लगता है समुन्द्र मुझे निगल जायेगा
और मैं तुझसे कभी न मिल पाउंगा

-> बस करो और कुछ मत कहो
तुम्हारे इस प्यार को देखकर मैं रो भी तो नहीं सकती
क्यूंकि मैंने तुम्हारा सारा प्यार सारे आंसू
अपने अन्दर समां कर रखे है

मेरा हर आंसू कीमती है क्यूंकि वोही तो है
जो तुमसे सौगात मैं मिला है
वोही तो हैं जो तुम्हारे होने का एहेसास दिलाता है

मेरे ये आंसू और हमारा ये प्यार हमेशा अमर रहेगा
ये मेरा वादा है तुमसे
जब तक मेरा अस्तित्व रहेगा

मेरा ये अक्षय समान शरीर तुझ पर समर्पित रहेगा