इस ज़माने को मैं कैसे जमाना कह दूँ
जमाना तो वो था जिसमे हम जवान हुए
वो मीठे बोल में छुपी शरारतें और वो सुहावनी रातें
वो चाँद की ही गोद थी जिसमे हम जवान हुए
अब कहाँ सुनता हूं मैं वो पाजेब की छन-छन
मिटटी का वो आगन था जिसमे हम जवान हुए
ना पडोसी से है कोई रिश्ता ना अपनों से है नाता
वो गली-कूचे थे जिसमे हम जवान हुए....
इस ज़माने को मैं कैसे जमाना कह दूँ
जमाना तो वो था जिसमे हम जवान हुए
अक्षय-मन