बुधवार, 24 दिसंबर 2008

भला ईश्वर कैसे जी जाते हैं ??


ज़िन्दगी देखी है हमने तुममे कहीं पनपती हुई पर
यहाँ तो बहुत से लोग मौत की चाहत में जी जाते हैं

प्यार को देखा है हमने दर्द के दामन में सर छुपाते हुए यहाँ
भटकते तो हम हैं सिर्फ़ इक आसरे की आरजू मे जी जाते हैं

धुप-छाँव का खेल है ज़िन्दगी, आती भी है तो कभी जाती भी
आना-जाना लगा रहेगा देखें हम भी कितने जन्म जी जाते हैं

कभी उन धडकनों को रुसवा ना करो जो दिल के दरवाजों पर
दस्तक देती है हम उन धडकनों की पनाह मे ताउम्र जी जाते हैं

"अक्षय" को तुम आज इतनी दुआ देदो की वो भी पत्थर बन जाए
देखना चाहता हूं पत्थर बनकर ,भला ईश्वर कैसे जी जाते हैं ??
भला ईश्वर कैसे जी जाते हैं ??
अक्षय-मन

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

इतना प्यार ना दे कि......


इतना प्यार ना दे कि बह जाउं आज-कल अश्को का बहाव कुछ ज्यादा है
सुना है आते-जाते तुफानो से यहाँ पर कोई सहारा,कोई कश्ती नही मिलती है

इतना प्यार ना दे कि खामोशी मेरे खुलते अधरों को चूम ले
सुना है उन फासलों से तू मेरी तनहाई से हु-ब-हु मिलती है

इतना प्यार ना दे कि हर दर्द अश्को के जैसे पी जाउं
सुना है गुजरे वक्त से दर्द कि दवा भी अश्को में छिपी मिलती है

इतना प्यार ना दे कि आईना भी मुझसे रूठने लगे
सुना है उसकी तनहाई से प्यार क्यूँ सिर्फ़ तुझको मिला
शक्लें तो दोनों की एक-दुसरे से मिलती हैं

"अक्षय" को इतना प्यार ना दे कि समय से पहले बिछड़ जाए
सुना है खुदा से कि प्यार पाने वालों को धड़कने कम मिलती हैं :)
अक्षय-मन

शनिवार, 13 दिसंबर 2008

इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं ।

साथ गुजारे वक्त का मैं भुला-बिसरा लम्हा हूं
तेरी निगाहों में हूं खटका,मैं वो ऐसा तिनका हूं
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं ।

बीती बातों की अन्जुमन में,मैं चुप-चुपसा तन्हा बैठा हूं
उनका रोना भी मैं रोया,अब बिन अश्क सिर्फ़ गरजता हूं
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं

कैसे हैं वो चाहने वाले जिन्हें ये भी ख़बर नही मुर्दा हूं के जिन्दा हूं
वो कहते थे मैं बोझ हूं उनपर लेकिन मैं तो बहुत ही हल्का हूं :) :)
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं

आहटों में किसी और की मैं तेरे क़दमों को गिनता रहता हूं
चढ़ता है नशा जब तन्हाई का तब मैं तुझको लिखता रहता हूं
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं

"अक्षय" को भूलना मुश्किल है पर उनके होठों पर
आया मैं भुला-भटका किस्सा हूं
मैं तेरी गुलाब जैसी जवानी पर दाग नही
तेरी डाली से हूं टूटा मैं वो ऐसा सूखा पत्ता हूं
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं
अक्षय-मन

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

बड़ा वाला पागल.....


मजबूर हुआ हूं आज फिर दर्द की दुश्मन ये कलम उठी
दस्तक दी है दर्द ने,कोरे-कागजों की खामोशियों पर कोई

किसी से चुराया था मैंने जो गम वो मुझे किस रस्ते ले आया
मुझे चोर समझ अब ये कलम वो गम मुझमे तलाश करती है
तारीख नही,सुनवाई नही गुनाह के उस वक्त की उस लम्हे उस दर्द
की वो सीधे ही उम्रभर के लिए मुझे कागजों में कैद करती है

गुनाह किया मैंने जो तेरा गम चुरा लिया सजा भी मिली मुझे
शब्दों का बंदी आज मैं हूं लोगो ने मुझे शायर नाम दिया
और तुने आवारा, दीवाना,बड़ा वाला पागल बना दिया !!!
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यार तुम दुखों को क्यूँ गिनते हो अपनी इन उँगलियों पर
कभी इन खामोश लबों की सुर्खियाँ भी गिन लिया करो !
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