आँखे हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
यादों के खुले आसमान पर
बादल अभी मंडराया नहीं
आँखे हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
बहुत अजीब सा लगता है
सच ना जाने क्यूँ छुपता है
मैं अकेला हूं आज इसलिए
मैंने कभी कुछ छुपाया नहीं
आँखे हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
दोस्त कभी दो बनाये थे
वो भी हाँ शायद पराये थे
वक़्त ऐसी चाल चल गया
मैं कुछ समझ पाया नहीं
आँखे हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
कुछ पहेलियों में आज मेरी
पहेली भी शामिल होगी
रिश्तों की डोर क्यूँ है उलझी
क्यूँ इसे किसी ने सुलझाया नहीं
आंखें हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
किसी का मैं कुछ हूं
कुछ रिश्तों से बंधा हूं
कुछ रिश्तों के मायने
मैं समझ कभी पाया नहीं
आंखें हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
शब्दों की शाख पर देखो
अरमानों का परिंदा बैठा है
बहुत चाह थी उड़ने की मगर
किसी ने उसे उड़ाया नहीं
आंखें हैं बंजर दर्द का
मौसम अभी आया नहीं
अक्षय-मन
बहुत मार्मिक रचना है आपकी...मन की व्यथा को सटीक शब्द दिए हैं...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
आँखें बंजर हैं...विशिष्ट अंदाज़ दर्द बयां करने का..
जवाब देंहटाएंबधाई
good composition...thanks for sharing
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंsafal abhivyakti ..banjar aankhen aur dard ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar blog hai aapka... aur likha bhi sundar hai.. badhai
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंati sunder geet
जवाब देंहटाएंjo sach nhin chhupate ve akele hi rah jate hain yhi to durbhagy hai .
----- sahityasurbhi.blogspot.com
bahut sundar Akshay ...
जवाब देंहटाएंbahut dino baad rachna mili padhne ko
सुन्दर-.सार्थक प्रस्तुति .बधाई .
जवाब देंहटाएंहमेशा कि तरह बहुत अच्छा लिखा है 'अक्षय'
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं.
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व्यस्त हूँ इन दिनों