शनिवार, 13 दिसंबर 2008

इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं ।

साथ गुजारे वक्त का मैं भुला-बिसरा लम्हा हूं
तेरी निगाहों में हूं खटका,मैं वो ऐसा तिनका हूं
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं ।

बीती बातों की अन्जुमन में,मैं चुप-चुपसा तन्हा बैठा हूं
उनका रोना भी मैं रोया,अब बिन अश्क सिर्फ़ गरजता हूं
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं

कैसे हैं वो चाहने वाले जिन्हें ये भी ख़बर नही मुर्दा हूं के जिन्दा हूं
वो कहते थे मैं बोझ हूं उनपर लेकिन मैं तो बहुत ही हल्का हूं :) :)
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं

आहटों में किसी और की मैं तेरे क़दमों को गिनता रहता हूं
चढ़ता है नशा जब तन्हाई का तब मैं तुझको लिखता रहता हूं
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं

"अक्षय" को भूलना मुश्किल है पर उनके होठों पर
आया मैं भुला-भटका किस्सा हूं
मैं तेरी गुलाब जैसी जवानी पर दाग नही
तेरी डाली से हूं टूटा मैं वो ऐसा सूखा पत्ता हूं
इश्क में बदले मौसम का मैं पहला-पहला झोका हूं
अक्षय-मन

21 टिप्‍पणियां:

  1. क्या सटीक भावनाओं का ज्वार बहाया है |
    वाह ! वाह !

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  2. 'आहटों में मैं किसी और के क़दमों में----'
    बहुत ही सुंदर लिखा है अक्षय जी.
    अच्छी रचना है.

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  3. अगर मैं पेज के html ko padhen->main page ke HTML mein '

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  4. pyaar ek khaamoshi hai.......
    likha bahut achha hai,par khaoshi naye arth de jati hai, prashnon ka samadhan ban jati hai

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. "अब बिन अश्क गरजता हूँ"
    बहुत ही शानदार बन पड़ा है, पहली ६ पंकितयां अच्छी बन पड़ी है बाद में लय कुछ टूटता नजर आ रहा है

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  7. बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने , बहोत ही सटीक और सत्य को प्रर्दशित करती हुई ये कविता आपकी बहोत खूब... ढेरो बधाई आपको..


    अर्श

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  8. Akshay subahse 3 baar tippanee deneki koshish kar chuki...har baar connection drop ho raha tha...
    Kas kabhi aisa ho ki tumhare ngme prashit hon aur mai prastawana likh sakun!!Jantee hun, ki itnee badee haisiyat mai nahi rakhti...tumhare nagmonke liye to koyi behad jaana maana aur behtareen sahitykaar chahiye...meree itnee auqat nahi...
    Kavit isqadar sundar hai ki uski tareefke liye mere shabkoshme shabd nahi....isliye, mugdh hun, par khamosh hun...aisehi likhte rehana...kabhi mai keh sakungi, jab tum pooree bulandiyonpe pohochoge(aur wo din bohot qareeb hai),ki mai is wyaktiko jaanti hun...bade faqr ke saath kahungi...

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  9. haan ab aayi na akshaya waali baat ....

    isko kehte hain akshaya waali kavita ....

    lekin main bahut hii halka huun
    bhai tumhara wajan kitna hai ......

    mast likha hai yaar ..........tumko to mujhe phone par gaali bhii nahii dena padii

    weldone .....
    badhiya likha hai ......
    emotion k saath me flow mast hai ......

    likhte raho ....or kabhi phone messege bhii kar liya karo ....
    pata hii nahii lagtaa hai kii tum jinda ho yaa nahii

    woh to bus poem likhne k liye kabr me se aa jaate ho aisa lagta hai :x

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  10. आहटों में किसी और की....भाई वाह...बेहतरीन रचना...बधाई.
    नीरज

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  11. bahut sundar , hamesha ki tarah ..


    aahto mein kisi aur ki... sabse acchi lines hai



    bahut badhai ,

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

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  12. एक लाइन में पहला निवेदन की ""काश तुम होती ""की अन्तिम लाइनों में मैंने पति धर्म बाकायदा निबाहने की कोशिश की थी शायद आप का ध्यान उधर न जा पाया हो\अब अपनी बात /शीर्षक ला जवाब "इश्क के मौसम का पहला झोंका ""आहटें किसी और की नहीं तेरी गिनता हूँ ""इन्तहा हो गई इंतज़ार की ,आई ना खबर मेरे यार की ""और ""हर आहट पे समझी वो आयगयो री झट .....""कैसे है चाहने वाले जिन्हें ये भी पता नही के जिंदा हूँ या नहीं /यही जमाने की रीति है /बहुत गंभीर रचना है

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  13. अक्षय जी
    भावः पूर्ण कविता और अभिव्यक्ति बहूत ही सुंदर है

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  14. bhaav bahut sundar hai...kahin kahin vaaky thode chhote hone chahiye they aisa mera mat hai..
    aapke blog mein pehli baar aaya...aur sabse interesting vishay ko sabse pehle padhaa...baaki bhi padhta hoon :)

    vyang mein meri pehli koshish ko yahaa padhe..aur apne sujhaav de:

    http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_26.html

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