एक हाथ में आंसू हैं जो मेरी आँख से टपके थे
दूजे हाथ कलम के रंग आंसुओं के संग,जो कोरे कागज़ रंगते थे
आसमां के आँचल में पलते थे,संवरते थे
फिर आते वो मेरे पास कल्पनाओं की उड़ान भरते हुए
जानते हो "शब्द" वो अनोखे थे ।
फूलों सी महक,कोयल सी चहक वो गीत प्यार का गाते थे
शब्द-शब्द के मिलन से एकमात्र दिल की लगन से
वो सोये मर्म को जागते थे ।
एक मैं था एक दीया था कुछ अनखिला सा उस रात खिला था
लेकिन शब्दों की भरमार थी
लेकिन शब्दों की भरमार थी
तन्हा रात की उस चांदनी में ना जाने क्या बात थी
क्या समाँ था क्या पवन थी गगन में तारे थे
जमीं पर जुगनूओं की झिलमिलाती रौशनी थी
वक्त ना जाने कब गुजर गया कलम तब रुकी जब पता चला
ये आज की रात हैं वो कल की रात थी ।
फिर शब्दों की बारिश हुई ऐसे जैसे आया हो सावन खुशी का
तन भीगा,मन भीगा ,भीगा है आँचल (होठ) हँसी का
जो चाहो इसे तुम मान लो चाहें मानो
आँचल आसमां का या मानो रात चाँदनी की
चाहें मानो रौशनी जुगनूओं की या मानो सावन खुशी का
ये सब तुम पर निर्भर है क्यूंकि ये सब सिर्फ़ है तुम्ही का
सिर्फ़ है तुम्ही का॥
अक्षय-मन
is kavita ko padhkar kuch panktiyaan amma ki likhi hui yaad aa gai....' dard mere gaan ban jaa
जवाब देंहटाएंsun jise dharti ki chhati hil pade'
sachmuch.......' geet gaya shabdon ne.....'.........behad hi khubsurat rachna bhai
जवाब देंहटाएंये सब सिर्फ़ है तुम्ही का
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ है तुम्ही का॥
ek saans men padh gayee ....aur ruk gayee in shbdon par....
bahut marm-sparshi.....
aabhar......
क्या बात है मित्र. बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंTouching poetic lines...
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