गुरुवार, 11 सितंबर 2008

गीत गाया शब्दों ने

एक हाथ में आंसू हैं जो मेरी आँख से टपके थे
दूजे हाथ कलम के रंग आंसुओं के संग,जो कोरे कागज़ रंगते थे
आसमां के आँचल में पलते थे,संवरते थे
फिर आते वो मेरे पास कल्पनाओं की उड़ान भरते हुए
जानते हो "शब्द" वो अनोखे थे ।

फूलों सी महक,कोयल सी चहक वो गीत प्यार का गाते थे
शब्द-शब्द के मिलन से एकमात्र दिल की लगन से
वो सोये मर्म को जागते थे ।

एक मैं था एक दीया था कुछ अनखिला सा उस रात खिला था
लेकिन शब्दों की भरमार थी
तन्हा रात की उस चांदनी में ना जाने क्या बात थी
क्या समाँ था क्या पवन थी गगन में तारे थे
जमीं पर जुगनूओं की झिलमिलाती रौशनी थी
वक्त ना जाने कब गुजर गया कलम तब रुकी जब पता चला
ये आज की रात हैं वो कल की रात थी ।

फिर शब्दों की बारिश हुई ऐसे जैसे आया हो सावन खुशी का
तन भीगा,मन भीगा ,भीगा है आँचल (होठ) हँसी का
जो चाहो इसे तुम मान लो चाहें मानो
आँचल आसमां का या मानो रात चाँदनी की
चाहें मानो रौशनी जुगनूओं की या मानो सावन खुशी का
ये सब तुम पर निर्भर है क्यूंकि ये सब सिर्फ़ है तुम्ही का
सिर्फ़ है तुम्ही का॥
अक्षय-मन

5 टिप्‍पणियां: