बुधवार, 6 अगस्त 2008

कुछ अपना ही....अपनी कहानी अपनी जुबानी


दाग की यही खासियत है ना जख्म नज़र आता है
ना दर्द की कसक जाती है
झुलसी यादों की भी यही फ़ितरत है ना कोई मरहम लगाता है
ना झुलस की दहक जाती है

क्यूँ खुरच रहे हो मेरे उन जख्मो को हालत अब ये है
ना खून बहता है ना आँख नम हो पाती है
दर्द मे घुटने की मेरी बचपन से आदत है
अब ना बचपन रोता है ना जवानी जाम पी पाती है

एक घूंट मे पी गया बचपन के सारे गमो को मैं
अब ना जहर असर करता है ना जिंदगी दम भरती है
खुश-किस्मत हूं सबकी नफरत खैरात मे मिली मुझे
अब ना हँसना आता है और ना खुशियाँ रहम करती हैं

वक्त कहाँ दवा बना? वो यादें उम्र भर जख्मी करती रही
ना उन अंधेरो मे खोये लम्हों का हिसाब मिलता है ना कोई रौशनी थम पाती है
सिसकता-तड़पता रहा रात के अंधरे सन्नाटों मे
अब ना खौफ जहन से जाता है और ना सोता हूं क्यूंकि ये नींद भी सहम जाती है


आईना क्या देखूं अब ख़ुद ही आईना बन गया हूं
ना हकीक़त से डर लगता है और ना आँखें गम छुपा पाती हैं
अब तक बदकिस्मती मुझे तलाशती रही मै किसकी तलाश करूं
ना किसी का प्यार 'अक्षय' बनता है ना कोई नई उम्मीद जन्म ले पाती है अक्षय-मन

15 टिप्‍पणियां:

  1. swaagat hai......in sundar rachnaaon ko dur-dur tak le jao,aakashiye vistaar ko pakdo aur akshay naam ko saarthak karo.....

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  2. नये ब्लॉग के लिए बहुत बहुत बधाई साथी
    मैं इन पंक्तियों से अपना परिचय कराऊंगा की

    आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
    रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा

    आज केवल आज अपने दर्द पी लें
    हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
    कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
    उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
    देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
    रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

    आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ..

    आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा

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    http://mainsamayhun.blogspot.com

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  3. क्यूँ खुरच रहे हो मेरे उन जख्मो को हालत अब ये है
    ना खून बहता है ना आँख नम हो पाती है
    दर्द मे घुटने की मेरी बचपन से आदत है
    अब ना बचपन रोता है ना जवानी जाम पी पाती है


    javaab nahi sir aapka..........

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  4. दाग की यही खासियत है ना जख्म नज़र आता है
    ना दर्द की कसक जाती है
    झुलसी यादों की भी यही फ़ितरत है ना कोई मरहम लगाता है
    ना झुलस की दहक जाती है

    क्यूँ खुरच रहे हो मेरे उन जख्मो को हालत अब ये है
    ना खून बहता है ना आँख नम हो पाती है

    Bahut Khubsurat, Keep writting.

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  5. आईना क्या देखूं अब ख़ुद ही आईना बन गया हूं
    ना हकीक़त से डर लगता है और ना आँखें गम छुपा पाती हैं
    अब तक बदकिस्मती मुझे तलाशती रही मै किसकी तलाश करूं
    ना किसी का प्यार 'अक्षय' बनता है ना कोई नई उम्मीद जन्म ले पाती है


    yaheen se ek nayee shruvaat karnee hotee hai..... akshya....kaa kshay
    naheen ho sakta.....

    likhte rahen....

    s-sneh

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  6. akshay ki har rachna ek se badh kar ek hoti hai, aur ab to mujhe lagta hai, mere tippani se upar ki kavita tum likhte ho..........bejor!!

    mukesh

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  7. बहुत ही सुन्दर दर्दे-बयानी की है , मित्र ...

    "वक्त कहाँ दवा बना?
    वो यादें उम्र भर जख्मी करती रही;
    ना उन अंधेरो मे खोये लम्हों का हिसाब मिलता है ,
    ना कोई रौशनी उस श्याम आती है
    सिसकता-तड़पता रहा रात के अंधरे सन्नाटों मे"

    यहाँ पर कुछ व्याकरण-चिन्ह लगाने के बाद बात ज्याद स्पष्ट होती है .
    *श्याम*अंधरे --ये दो शब्द कुछ असम्बद्ध से लगे ...
    अगर अन्यथा ना ले ,तो इस पारा को फिर से लिखने का प्रयास करे...

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  8. दाग की यही खासियत है ना जख्म नज़र आता है

    ना दर्द की कसक जाती है

    झुलसी यादों की भी यही फ़ितरत है ना कोई मरहम लगाता है

    ना झुलस की दहक जाती है


    ye bhaut ghara bhaav hai aur inko itni gharayi se dekha aur likha iske liye badhayi

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  9. वाह वाकई ये आपकी कहानी है

    अगर है तो मिलती जुलती है मुझसे :)

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