आत्मा को त्याग शरीर किस तृष्णा मे लीन है
मोक्ष ना मिल पाया इसको ये कितना मलिन है !
रोम-रोम जब रम जाता
रूपान्तर हो दूसरा रंग जब चढ़ जाता
एक जन्म मे दो बार तू जन्मा है
पहले नाम था तेरा काल्पनिक जीवन
अब परिमार्जित आत्मा है !
लौकिक द्रष्टि से देखूं तो
पता चले कितने पाप किए
हर सवाल का उत्तर आता मौन
अन्तिम पल पश्चाताप की आग मे जले !
हरण किया उस आबरू का तुने
जो तुझमे मे ही बसती थी
हुआ ना जाने तुझको किया
ये बार-बार कहती पनपती थी कि
मैं तेरा ही अभिमान हूं तू मुझको ही सताएगा
मुझको तुने लूटा तो लूटा ,तेरी हो क्यूँ दुसरो से लूटती थी !
आत्मा सो गई है आबरू रो रही है
अँधेरा जाग गया रौशनी खो गई है
मैं क्यूँ अब तक ना समझ पाया था
देख आईना तो ये जाना मेरी आंखें मेरी ही
आँखों से पर्दा कर रही है !
अब ख़ुद से नज़रे मैं ना मिला पाउं
हकीक़त मे पले आईने से मैं घबराउं
परछाइयों के पीछे मैं भागू लेकिन
उनको कभी मैं छुं ना पाउं !
साथी बहुत शुभांग दर्शन............
जवाब देंहटाएंदर्शन......अभी से....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे....
अच्छे भाव....
स-स्नेह
गीता पंडित
साधुवाद.
जवाब देंहटाएंआत्मा सो गई है आबरू रो रही है
जवाब देंहटाएंअँधेरा जाग गया रौशनी खो गई है
मैं क्यूँ अब तक ना समझ पाया था
देख आईना तो ये जाना मेरी आंखें मेरी ही
आँखों से पर्दा कर रही है !..........
अंदरूनी मर्म को सहज रूप से संवारा है,
और भावनाओं को सजीव कर दिया है,
बहुत ही अच्छा लिखा है,
शब्दों का चयन दिल तक जाता है......
बहुत ही सुन्दर रचना..!!
जवाब देंहटाएंहाँ, इतनी शुद्ध हिंदी चलेगी.. पहले तो काफी क्लिष्ट हिंदी का आप प्रयोग करते थे..
वैसी भी लिखिए, वो आपकी आत्मसंतुष्टि प्रदान करती होगी.. पर हमलोग जो ब्लॉग में पढना चाहते हैं वो इसी तरह की सामान्य हिंदी हो तो किसी को भी पढने में कोई मुश्किल नहीं होगी..
एक और बात बोलना चाहूँगा.. कि आपकी रचना पढ़ते वक़्त यही महसूस होता है कि किसी मंदिर कि पवित्र भावना दिल में उतरती जाती हो.., अच्छा है..!!
akshy bhaut hi sunder rachna
जवाब देंहटाएंbhaut achhe bhaav