बुधवार, 24 जून 2009

तुमने अपनी कला से.....

पत्थरों में भी जान होती है ये मैंने तुमसे जाना है
इस पत्थर को जीवित कर दिया तुमने अपनी कला से...

रंगों में भी पहचान होती है ये मैंने तुमसे जाना है
इन रंगों को नया नाम दिया तुमने अपनी कला से....

हाथों में भी दुआ होती हैं ये मैंने तुमसे जाना है
इन हाथों से संसार संवार दिया तुमने अपनी कला से....

मौन चित्रों में आवाज होती है ये मैंने तुमने जाना है
इन चित्रों को एक सुर दिया तुमने अपनी कला से...
अक्षय-मन

20 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना और भाव भी,
    अच्छा लगा,धन्यवाद

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  2. मौन चित्रों मे आवाज होती है ................
    " इन पंक्तियों मे बहुत जान है....बहुत मनभावन प्रस्तुती , और ब्लॉग का ये नया पीला रंग आँखों को बेहद भाया...खुबसूरत.."
    regards

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति....आपका ब्लॉग बहुत ही सुन्दर है यहाँ आ कर लौटने का मन नहीं करता...
    नीरज

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  4. achchi bhav prastuti.............bas dekhne wali parkhi nazar honi chahiye.

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  5. अक्षय जी आपकी ये कविता वाकई में बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार है! चित्र भी बहुत सुंदर है!

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  6. बहुत खुबसूरत रचना लगी आपकी यह ..

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  7. बहूत ही सुन्दर चित्र के साथ अपने मन के गहरे भाव को लिखा है ...............सच कहा मौन चित्रों में भी आवाज़ होती है......... बधाई सुन्दर रचना के लिए

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  8. Akshay,
    Tumhere alfaazon yaa abhiwyakti ke baareme kuchh nahee kahungi..tumharee ye kala mujhe nishabd kar detee hai..
    Aur Neeraj ji se sahmat hun...blog ko sach me itna sundar bana rakha hai, ki, dertak niharte rahne ka man karta hai...! Kaash mujhe apna blog banate samay kuchh avadhi mili hoti!
    snehsahit
    shama

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  9. akshay ,

    is baar main bahut der se tumhari is kavita ko padh raha hoon ...

    mere pass shabd nahi hai aapki tareef ke liye .......

    har pankti ek nayi baat kahti hui hai aur tumhare lekhan ki kala ko darshati hui hai ..

    tumhara bahut abhaar is post ke liye ..

    tumhara
    vijay

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  10. बुरा न मानना अक्षय आया तो था टिप्पणी देने पर लगातार दो ऐसी कवितां पढ़ कर टिप्पणी देने का मन नहीं रह गया ' ऐसी........कविताएँ ?

    हाय सारी अनुभूतियाँ मंत्रविद्ध सी ,
    निश्चल हो गयीं, स्वर-वाणी भी खोयी ;
    भाव-सागर में जो मैं डूबा फिर न उतराया,
    संवेदनाओं की आंधी में मेरा शब्दकोष छितराया ||

    खुश कित्ता ,तुसी छा गए !!!!!

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  11. तुमने भी इन शब्दों में जान भर दी अपनी कला से

    बहुत अच्छे..
    लिखते रहो और खुश रहो

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  12. अक्षय,
    तुमने जो चित्र लगाये हैं वो भी बहुत खूसूरत हैं, बधाई

    स्वप्न मंजूषा 'अदा'

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