गुरुवार, 8 जनवरी 2009

हर अश्क में है अक्स तेरा


मैं शक करता रहा खुद के ही ऐतबार पर
मुझसे जुदा मेरा यकीं होंसला कोई मिला नहीं

वो हया भी शर्मसार हो गई आईने में देखकर
पर्दा भी तुने उससे किया जिससे कोई गिला नहीं

नाउम्मीद में उम्मीद की तू ही तो एक वजह थी
मैंने जो ख्वाब बोया था,हकीक़त में कोई खिला नहीं

हर अश्क में है अक्स तेरा इन्हें कैसे मैं जुदा करूँ
ये है मेरी निगार-ए-जां,रुकता कोई सिलसिला नहीं

मिलते हैं हमसे अब कहाँ बीते हुए वो कुछ मंजर
ठहरी हुई तन्हाई से क्यूँ गुजरा कोई काफिला नहीं

मेरी खबर ये लब्ज़ मेरे देते रहेंगे हाँ तुझे
तेरा ही कुछ पता नहीं तेरी ही कोई इत्तिला नहीं
अक्षय -मनं

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (10-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. वाह.......वाह................ हर शेर दाद के काबिल है। बहुत खुब।

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  3. प्रेम व विरह मे पगी कविता

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  4. badhayi ho akshay , welcome back.. leki ye to bata do ki miss kise kar rahe ho..

    --------------

    मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
    आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
    """" इस कविता का लिंक है ::::
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
    विजय

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