शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

अभिशापित आस्था



एक आस्था ही तो है जो बताती है
समर्पित हूं में तेरे लिए
एक जिज्ञासा ही तो है जो मुझे समझती है
सिर्फ एहेसास हूं में तेरे लिए

मुंद कर इन पलकों को स्मरण करूं में तेरा ही
ज्योत जला इन नयनो की आरती करूं तेरे लिए

अपनी इस तपस्या को व्यर्थ न जाने दूंगा कभी
इस जन्म में तेरा न हुआ तो क्या
अगले जन्म में आउंगा तुझे पाउंगा
और जीउंगा सिर्फ तेरे लिए ........

और चुपके से आकर तेरे कान में पूकरुंगा तेरे नाम को
और कहूंगा मेरा प्यार,मेरी आस्था,मेरा समर्पण
मेरी जिज्ञासा,मेरा एहेसास मेरी तपस्या है सिर्फ तेरे लिए

मैं न जनता था कि ये मेरे लिए एक भ्रम साबित होगा
पता तो तब चला जब मेरी आस्था अभिशापित हुई
उससे ये सुनकर कि तू अजनबी है मेरे लिए तू अजनबी है मेरे लिए ....

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