शनिवार, 19 जुलाई 2008

बस तुम करवट मत लेना ,सपने (२)



रात फिर वो सिलवटें जाग गई जरा सी करवट लेते ही
और वहीं -कहीं पड़े कुछ सपने कुलबुला उठे
उन सिलवटो से हुई बैचैनी से ...

वो कराहना मेरा उस बेचनी को देख
आँचल में लपेट लिए सपने सारे
पता है उस आँचल में सपनो
के साथ कोई और भी रहता है
एक हकीक़त रहती है एक विश्वास रहता है ...

न जाने क्यूँ उम्र के साथ-साथ वो सपने भी ढल जाते हैं
अधूरे उन सपनो की कोई मज़बूरी रहती है
या जाने कुछ मलाल रहता है ...

कौन कहता है सपने देखना बेहद आसान है
मैं बता दूं सपने देखने में भी कुछ अर्चने आया करती हैं
वो हलचल वो बैचैनी कुछ करवटें कुछ सिलवटें
वो लाया करती हैं ...

रात की गुप्त खामोशी में वो सपने
मुझसे आकर बोला करते हैं
जुबान नही उनकी तो क्या
वो मन के भेद खोला करते हैं ...

अभी ये थोड़े हकीक़त से अनजान हैं
थोड़े हैरान थोड़े परेशान हैं
इसने भी एक सपना देखा है
हकीक़त में ढलने का इसे भी अरमान है ...

अभी तो वो परियो की दुनिया में रहते है
लेकिन खुशयां मेरे आँचल में भरते हैं
जब हम स्मरण कर उन्हें पास बुलाते हैं
तो वे थोड़ा शरमाते हैं थोड़ा इठलाते हैं
बड़ी मिन्नतों के बाद करीब आते हैं .....
और चुपके से आकर बोलते हैं
अब करवट मत लेना न तो सिलवटें
जाग जाएँगी मुझे उन से बहुत डर लगता है
कहीं तुम्हारी नींद न टूट जाए
कहीं तुम्हारा सपना न टूट जाए
कहीं मैं अधूरी न रहे जाउं
बस तुम करवट मत लेना न तो सिलवटे
जाग जाएँगी मुझे उनसे बहुत डर लगता है
बस तुम करवट मत लेना

5 टिप्‍पणियां:

  1. सपनों से अलग होना कितना कठिन,
    कितना दर्द भरा......पर सपने सपने होते हैं,
    कोई इन सपनों पर पहरा नहीं बैठा सकता....
    सपने लिए चलो,डर ख़त्म हो जायेगा...
    बहुत अच्छी कविता.

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  2. बेचनी.........शायद तुमने बैचैनी लिखना चाहा है.........
    सपने देखने कठिन हो सकते हैं पर उसको अमली जामा पहनना और कठिन होता है .........
    पर मुझे उम्मीद है तुम्हारे सारे सपने सच होंगे............

    बहुत खुबसूरत कविता.........

    मुकेश भैया

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  3. रात की गुप्त खामोशी में वो सपने
    मुझसे आकर बोला करते हैं
    जुबान नही उनकी तो क्या
    वो मन के भेद खोला करते हैं ...
    tum bahut jiyo, bahutlikho akshay, yhi shubhkaamnayen hai ....bahot hi pyari rachna .......

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  4. zindgi agar saaz hai,to sngeet hai sapne....
    zindgi agar aakash hai to indardhanush hai sapne hai....
    zindgi agar pyaas hai to sagar hai sapne...
    sach hai ki sapne hai to hum hai...
    Ye duniya ye kayant hai...
    sazate raho har pal ek naya sapna
    ek din zrur sach hoga wo purana sapna...!!!



    nice poem..chitu.!!!

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  5. sapno ki gagar akshay hoti hai.....
    auron ka to pata nahi jo khud akshay hai
    ye uski sangini hoti hai...
    tum tumhari kalam, tumhaare khwaab....yunhi sawarte rahe....
    akshay hone ki yahi to pehchan hoti hai!!

    ...bahut achha likha hai bhayee!
    ..ehsaas!

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