शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

तू क्यूँ ना आए ?


बरस गया ये सावन तू क्यूँ ना आए
तरस गये ये नयनन तू क्यूँ ना आए !

आवत है अब मेरे आगन सखी मेरी अनैहा(अशांति)
चुप-चुप देख मुझे वो कहवे क्यूँ तरसे बीते रैना
आहत होय अब मेरे नयना मेरी औषधि अश्रु बन जाए !
बरस गया ये सावन तू क्यूँ ना आए
तरस गए ये नयनन तू क्यूँ ना आए !

केश मेरे वो घने-घने जो तेरे मुख पर गिर-गिर जाए
उलझ-बिखर पड़े हैं वो उनको अब कोई ना सुलझाए
मेरे नयना गागर मदिरा ,सूख गए सब तू कैसे मदकाए
बरस गया ये सावन तू क्यूँ ना आए
तरस गए ये नयनन तू क्यूँ ना आए !

मैं बन शोभन श्रृंगार रचूं ,मैं बन जोगन गुणगान करूं
पतन हुआ अब योवन मेरा,जोगन से मैं जीर्ण(खंडित) बनूं
आतुर-अधीर(व्याकुल) हो-हो फिरी मैं, मन में बसे तुम
दिखो भगवन में जब ढूंढा जग में तब तू ना मिल पाए !
बरस गया ये सावन तू क्यूँ ना आए
तरस गए ये नयनन तू क्यूँ ना आए !

मन-मन मोह ले तेरी बतियाँ अब तू मुझसे क्यूँ ना बतियाय
बेसुध पड़ी अबुध(अनजान)खड़ी अब तू मुझको क्यूँ ना सताए
तेरी पुकार,तेरा दुलार,तेरी फटकार,तेरा प्यार मुझे वो सब याद आए
बरस गया ये सावन तू क्यूँ ना आए
तरस गए ये नयनन तू क्यूँ ना आए !

गुलाब पंखुडियाँ से होठ रसीले
अंगूरी मदिरा से नयन नशीले
मुरझा गए सब सूख गए अब
होठ रसीले वो नयनो के मदिरा प्याले
हुआ क्या मुझको तू ही बता रे
तुझमे हुई तल्लीन मैं या हुई
तुझसे मलिन मैं,ये मुझे अब कौन बतलाए
बरस गया ये सावन तू क्यूँ ना आए
तरस गए ये नयनन तू क्यूँ ना आए !

सो-सो जाती थी मैं पहले तेरे काँधे सिर रखकर
तेरे बिन जो सोना चाहूं मोहे अब निंदिया ना आए
पैर पसीरुं या मुख मैं फेरूँ हर बात में तू याद आए
मेरी पीड़ा तू क्यूँ ना समझे क्यूँ ना अपने पास बुलाए
बरस गया ये सावन तू क्यूँ ना आए
तरस गए ये नयनन तू क्यूँ ना आए !अक्षय-मन

1 टिप्पणी: