बुधवार, 16 जुलाई 2008

कविता


क्या मैं आज आलोचना बन गई हूं
मानवता के बदलते रंग में क्या मैं
भी ढल गई हूं

कविता हूं कवि की मूकता उसके मर्म
को रश्मि-रूप देती हूं
क्यूँ आज मैं सादगी से सजा बन गई हूं

आज अथाह को तू ना जाने मैं एहेसासों
में बसती हूं
आज मैं मलिन हो तेरी नज़रों में मिथ्या
बन गई हूं


मैं तो रचित हुई तेरे लाभांश के लिए किन्तु
अब मनोरंजन करती हूं
मैं तो रूपक थी अमूक की कविता थी अब मैं खुद
लाचारी बन गई हूं

शब्दों से पिरोई एक माला हूं किन्तु अब आवंछित
कहेलाती हूं
मेरी तम्यता मेरी मधुरता कुछ नहीं क्या आज मैं
लोभी बन गई हूं

कागज रचती थी कलम और जो हम कल्पनाओं में बातें करते थे
ये शब्दकोष कविता-रूप तब लिया करते थे जब शब्दों का
श्रृंगार हम अपनी भावनाओं से करते थे
मेरी कल्पनाये मेरी भावनाए और साथ ये शब्द-कोष सब हो
गए अब कोष्ठ्को में कैद और शैली से मैं आज शोक बन गई हूं

मैं कविता से कनक बन गई अक्षर-स्वर्ण हुआ करती लेकिन अब
विकल(व्याकुल) करे ऐसा विष-फल बन गई हूं
मैं तो वेदिका थी शब्दों के सूत्र से तेरी ही बधू बनी थी
विष-फल तुने मुझे बनाया और अब विधवा भी बन गई हूं

मेरी व्यथा तो देख श्रापित शब्दों से बुना मैं तेरा कफ़न भी बन गई हूं
तेरा कफ़न भी बन गई हूं मैं कविता नही कुछ और बन गई हूं कुछ
और बन गई हूं अक्षय-मन
क्या हमारे लिए ये शर्म की बात नही??????

8 टिप्‍पणियां:

  1. kavita ka roop kavita ke shabdon main dil ko choo gaya!

    ...Khubsoorat kavita!

    ...AkshayEhsaas!

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  2. sach kah rahee hoon...aapke bhaav man ko choo jaate hain....

    thodee see aur kkavyamy ho saktee hi....samy den thidaa se ise agar aap.....

    bahut acchhee...

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  3. sach kaha aapnai kavita ..rachna kai upar aap ki soch nahi kahunga aaj ...yah pakdh hai aaj kai laikhni par bahut cintan karna hoga ...aap ko is chintan kai liye mai salaam karta hun aap jaisai kavi hi likh saktey hai jo dolo dimag kai saath saath ruci bhi rakhtey ho mitr

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  4. sach hai kalam uthakar kavita ko kuch aur bana diya gaya hai,ek andhi daud me shaamil hain sab......baat marm se alag jeet ki ho gai hai,aur marm me jeet kya,haar kya!

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  5. हाँ सच है.. के पढ़ने वालों की उम्र बदल गयी है.. और अविव्यक्ति भी..
    पर यही तो परिक्षा है.. तुम्हे नहीं बदलनी है.. अपनी अभिव्यक्ति... नहीं मारना है अपनी भावनाओं को.. नहीं मारने देना है अपनी आत्मा में सेंध किसी को भी.....!! तुम्हारी..और हर कवि की रचना अजर.. है अमर है.. अक्षय है..!!!! लिखते रहो.. अमर रहो.. !!

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  6. kavita kya se kya ban gayi hai
    sawalon ka silsila aur uski asli roop ko samjhate hue bhaut sunder kavita likhi hai

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  7. kitna marm samete hue hai aapki yah rachna ...sach mei kavita kya se kya ho gayi hai ....sochne par majboor karti hai

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  8. Mulyo ka harash har jagah hua hai, aur aaj ke daur ki kavitaye bhi usse achuti nahi hai, Good thought, Good Poem.

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